राष्ट्र चिंतन के साथ साथ घर घर की दिनचर्या - कोरोना असर

(कोरोना असर)  (राष्ट्र चिंतन के साथ साथ घर घर की दिनचर्या की अपनी कहानी :-

                                         इस वक्त हर पल ऐसा लग रहा है कि अब कलयुग समाप्त हो गया है।और हम सबको अब सतयुग में प्रवेश का आभाष होने लगा है।हम सबका जीवन इस समय कितना ही सादा जीवन हो गया है।न किसी से बात करने की जरूरत ना ही किसी के डांट की कोई संभावना इस समय घर में सादा खाना जैसे दाल रोटी, कुछ ही कपड़े यही काफी लग रहा है।इस थोड़े में भी लोगों को काफी आनंद आ रहा है जिसे शब्दों पिरोया नहीं जा सकता है       

      आजकल प्रतिदिन की दिनचर्या ऐसी हो गई है कि जिसकी कभी कोई कल्पना तो थी ही नहीं।सुबह उठने के बाद जो क्रिया शरू होती है उसमें किसी प्रतिक्रिया की सम्भावना ही खत्म हो गई है।सुबह पूजा,फिर 9 बजे से रामायण, फिर 12बजेसे महाभारत,वहीं बैठे बैठे सिनेमा,शाम को 5 बजे से चाणक्य फिर अपनी वाणी का भाव लिखना,शाम को 0630बजे से आरती,और फिर 7बजे से महाभारत,तथा 9बजे से फिर रामायण,आजकल सचमुच में घर के सारे सदस्यों का यही दिनचर्या हो गया है।सब एक दूसरे की मदद करने के लिए तत्पर रहते हैं,एक दूसरे प्यार भरी बातें करते हैं। आजकल सब मिल कर काम करते हैं।     

        अपने उस भागदौड़ की जिंदगी में जैसे ठहराव सा आ गया है। इस समय शांति और संतोष सबके मन में साफ साफ दिखाई भी दे रहा है।कोई किसी की शिकायत भी नहीं कर रहा है|  इस समय सोना,चांदी, धन,एवं हमारे सुंदर ड्रेस कोई काम नही आ रहा है।सब अपने अपने जगह जैसे स्थिर से हो गए हैं।लोगों की नजरें भी उधर जा ही नहीं रही हैं।सब लोग थोड़े में ही गुजारा भी कर ले रहे हैं।आजकल यही तो संतोष धन भी है  इससे पहले तो हम सबके पास सब कुछ था,केवल  यही संतोष धन ही तो नही था।इस धन को लेने के बारे में कभी कोई सोचता तक भी नहीं था।

           आजकल घर में हर पल भक्ति की लहर बहती ही रहती है।न कोई भाव बढ़ने की कोई खुशी है,न ही भाव घटने का कोई दुख है,और न ही कोई  चिंता,और न ही किसी की निंदा करने की सोच,आजकल सिर्फ और सिर्फ हम सबके अंदर परमार्थ का भाव ही भाव दिखने लगा है
   
  इस समय नदियाँ एवं प्रकृति भी खूब खुश हैं, क्योंकि उनको नुकसान करने वाले उन तक नहीं जा पा रहे हैं।अपने अगल बगल का वातावरण भी काफी स्वच्छ हुआ है तो उसके कारण हमीं लोग हैं।वाह रे विडम्बना जब हम सब घर में हैं तो बाहर सब साफ सुथरा दिख रहा है।और जब हम बाहर होते हैं तो उस गन्दगी को ही देख पाते हैं जिसे हम कभी भी सही रूप में साफ कर ही नहीं पाए |
     
 इस समय लगता है कि हम सभी लोग इतनी बड़ी खुशी के कारण पागल से हो गये हैं। अब जीवन जीने को हर कोई अपने अपने तरीके से प्रयास कर रहा है। मतलब यह है कि अब सबको यहसास हो गया है कि जीवन है तो जग है अन्यथा सब कुछ बेकार और निर्जीव है

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