मन की अपनी संवेदना

मन की अपनी संवेदना  :-

                                                                           सब तरफ वातावरण शांत ही शांत है।पूरे दिन में दो बार खाना ठाठ से खा रहे हैं।बड़े मजे की बात यह है कि तीन टाइम सो भी रहे हैं।ऐसा लगता है कि किसी और चीज की जरूरत ही नहीं है।और अगर ऐसा ही रहा तो नए कपड़ों की जरूरत भी साल में ज्यादा नहीं रहेगी।
            
 इस समय अपने अगल बगल का वातावरण भी इतना साफ है कि शरीर पर कोई दुष्प्रभाव नहीं हो पा रहा है।शरीर हरवक्त ताजगी महशुस कर रहा है।जब ऐसे ही साफ ऑक्सीजन मिलता रहेगा तो बीमारी भी तो नजदीक नहीं आ पाएगी।      

आजकल मृत्युदर भी ना के बराबर दिख रहा है।केवल कोरोना को ही इसमें छूट दी गई है कि वो किसी को भी अपने जबड़े में जकड़ सकता है।इस समय सड़क पर एक्सीडेंट से तो कोई नही मर रहा है।
          

 वाकई में इस लॉक डाउन ने लोगों को कितना बदल दिया है।इस समय प्रेम और प्यार की कोई कहानी नहीं सुनने को मिल पा रही है।किसी को किसी पर शक नहीं है,न कोई शॉपिंग,न होटल में जाने या मूवी के लिए जाने की कोई फरमाइश।न ही कहीं घूमने जाने की जरूरत और न ही नई गाड़ी या साड़ी की कोई डिमांड है।न ही किसी को कोई ज्वैलरी खरीदने की जिद।न ही कोई गहना पहन रहा है न ही उसके बारे में सोच रहा है।
           
इस समय सब कुछ इतना ठीक ठाक चल रहा है कि उसे ब्यक्त करने के लिए कोई उपयुक्त शब्द नहीं मिल पा रहा है।इसे राम राज ही तो कहेंगे।क्योंकि न कोई चोरी की घटना, न किसी से किसी का तू तू मैं मैं की कहानी सुनने को मिल रहा है।संजीदगी के साथ लोग जरूरत मंद की मदद कर रहे हैं।भूखे को खाना खिला रहे हैं।ऊंच नीच की भावना मन से लुप्त हो गई है।कितना सुकून चैन का जीवन यापन चल रहा है।
           
यह शांत और सुकून कब तक रहेगा इसे कोई नहीं जानता है।लेकिन मन के एक कोने में कहीं न कहीं एक डर भी सुनने को मिलता रहता है कि कहीं यह शांति एवं सुकून किसी तूफान के आने की आहट तो नहीं?

अरुण कुमार 

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