City of Bells
झालावाड़ शीतलेश्वर (चंद्रमौलिश्वर): चंद्रभागा नदी के तट पर झालावाड़ के इस मंदिर का निर्माण राजा दुर्गण के सामन्त वाप्पक ने महादेव मंदिर वि.स. 746 (689 ई.) में किया था। यह देवालय राजस्थान के तिथियुक्त देवालयों में सबसे प्राचीन है। झालरापाटन का वैष्णव : इसे 'सात सहेलियों का मंदिर' भी कहते हैं। कर्नल टॉड ने इसे 'चारभुजा का मंदिर' मंदिर (पझनाभ मंदिर) भी कहा है। यह मंदिर कच्छपघात शैली का हैं। शांतिनाथ जैन मंदिर, : 10वीं से 12वीं शताब्दी के मध्य बना यह मंदिर कच्छपघात शैली का है।
मंदिर के गर्भगृह में काले झालरापाटन रंग के पत्थर की आदमकदीय शांतिनाथ दिगम्बर जैन प्रतिमा है। चांदखेड़ी का जैन मंदिर : झालावाड़ के खानपुर में यह एक प्राचीन जैन मंदिर है जिसमें आदिनाथ की विशाल प्रतिमा स्थापित है। चन्द्रभागा मंदिर : चन्द्रभागा नदी के तट पर स्थित सातवीं सदी का मंदिर है। ये गुप्तोत्तरकालीन मंदिर है। नागेश्वर पार्श्वनाथ : चौमहला (झालावाड़) में प्रसिद्ध जैन तीर्थ नागेश्वर पार्श्वनाथ स्थित है। भवानी नाट्यशाला : वर्ष 1921 में राजा भवानी सिंह द्वारा पारसी ऑपेरा शैली में निर्मित्त अनोखी नाट्यशाला। झालरापाटन : 'City of Bells' के नाम से प्रसिद्ध । कोटा राज्य के सेनापति जालिम सिंह ने चंद्रावती नगर के ध्वंसावशेषों
पर झालरा पाटन नगर की स्थापना की। यह चंद्रभागा नदी के तट पर स्थित है। यहाँ कार्तिक पूर्णिमा को
चन्द्रभागा मेला आयोजित होता है। कौल्वी की बौद्ध गुफाएँ : डग पंचायत क्षेत्र में कौल्वी, विनायका, हथियागौड़ एवं गुनई में स्थित बौद्ध गुफाएँ। गागरोन दुर्ग : आहू और कालीसिंध नदियों के संगम स्थल 'सामेलजी' के निकट मुकन्दरा की पहाड़ी पर स्थित इस (डोडगढ़/धूलरगढ़) दुर्ग का निर्माण डोड (परमार) राजपूतों द्वारा करवाया गया था। खींची नामक राजवंश के संस्थापक (जलदुर्ग)
देवनसिंह ने इसे जीतकर इसका नाम गागरोन रखा। सूफी सन्त हमीदुद्दीन चिश्ती (संत मीठेशाह) की दरगाह व संत पीपा की छतरी यहाँ स्थित है।
झुंझुनूं (शेखावाटी का सिरमौर जिला) शेखावाटी को 'राजस्थान के मरुस्थल का सिंह द्वार' कहा जाता है। • लोहार्गल, झुंझुनूं : मालकेतु पर्वत की घाटी में अवस्थित । इस तीर्थ की चौबीस कौसी परिक्रमा प्रसिद्ध है। यह गोगा नवमी
से प्रारंभ होकर भाद्रपद अमावस्या को समाप्त होती है। इसे मालखेत जी की परिक्रमा भी कहा जाता है। - राणीसती का मंदिर : राणी सती का वास्तविक नाम नारायणी था जो अग्रवाल जाति की थी। नरहड़ शरीफ की झंझुनूं जिले की चिड़ावा तहसील के एक प्राचीन कस्बे नरहड़ में बाबा शक्कर बार पीर की दरगाह स्थित दरगाह
है। बाबा शक्कर बार पीर को 'बांगड़ का धणी' भी कहा जाता है।
• खेतड़ी : भारत की ताम्र नगरी के नाम से विख्यात खेतड़ी नगर का स्वामी विवेकानन्द से गहरा रिश्ता है। शिकागो
धर्म सम्मेलन में जाने से पूर्व स्वामीजी खेतड़ी आये थे। खेतडी नरेश महाराजा अजीतसिंह से उनका पारिवारिक संबंध था। स्वामीजी को विवेकानन्द नाम खेतडी की ही देन है। यहाँ रामकृष्ण मिशन का मठ, भटियानी का मंदिर, पन्नालाल शाह का तालाब आदि दर्शनीय स्थल हैं।
पर झालरा पाटन नगर की स्थापना की। यह चंद्रभागा नदी के तट पर स्थित है। यहाँ कार्तिक पूर्णिमा को
चन्द्रभागा मेला आयोजित होता है। कौल्वी की बौद्ध गुफाएँ : डग पंचायत क्षेत्र में कौल्वी, विनायका, हथियागौड़ एवं गुनई में स्थित बौद्ध गुफाएँ। गागरोन दुर्ग : आहू और कालीसिंध नदियों के संगम स्थल 'सामेलजी' के निकट मुकन्दरा की पहाड़ी पर स्थित इस (डोडगढ़/धूलरगढ़) दुर्ग का निर्माण डोड (परमार) राजपूतों द्वारा करवाया गया था। खींची नामक राजवंश के संस्थापक (जलदुर्ग)
देवनसिंह ने इसे जीतकर इसका नाम गागरोन रखा। सूफी सन्त हमीदुद्दीन चिश्ती (संत मीठेशाह) की दरगाह व संत पीपा की छतरी यहाँ स्थित है।
झुंझुनूं (शेखावाटी का सिरमौर जिला) शेखावाटी को 'राजस्थान के मरुस्थल का सिंह द्वार' कहा जाता है। • लोहार्गल, झुंझुनूं : मालकेतु पर्वत की घाटी में अवस्थित । इस तीर्थ की चौबीस कौसी परिक्रमा प्रसिद्ध है। यह गोगा नवमी
से प्रारंभ होकर भाद्रपद अमावस्या को समाप्त होती है। इसे मालखेत जी की परिक्रमा भी कहा जाता है। - राणीसती का मंदिर : राणी सती का वास्तविक नाम नारायणी था जो अग्रवाल जाति की थी। नरहड़ शरीफ की झंझुनूं जिले की चिड़ावा तहसील के एक प्राचीन कस्बे नरहड़ में बाबा शक्कर बार पीर की दरगाह स्थित दरगाह
है। बाबा शक्कर बार पीर को 'बांगड़ का धणी' भी कहा जाता है।
• खेतड़ी : भारत की ताम्र नगरी के नाम से विख्यात खेतड़ी नगर का स्वामी विवेकानन्द से गहरा रिश्ता है। शिकागो
धर्म सम्मेलन में जाने से पूर्व स्वामीजी खेतड़ी आये थे। खेतडी नरेश महाराजा अजीतसिंह से उनका पारिवारिक संबंध था। स्वामीजी को विवेकानन्द नाम खेतडी की ही देन है। यहाँ रामकृष्ण मिशन का मठ, भटियानी का मंदिर, पन्नालाल शाह का तालाब आदि दर्शनीय स्थल हैं।
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