परिया हवेलियाँ : बीकानेर की इन हवेलियों में मुगल, हिन्दू और यूरोपीय कला का अद्भुत समन्वय है। गा, बीकानेर : बीकानेर नरेश रायसिंह द्वारा लाल पत्थरों से निर्मित्त । इसकी नींव 1588 ई. में रखी गई व सन् 1594 में
बनकर पूर्ण हुआ। इसकी आकृति चतुष्कोण या चतुर्भजाकति है। यहाँ सूरजपोल पर रायसिंह प्रशस्ति उत्कीर्ण हैं। दुर्ग में 1567 ई. के चित्तौड़ साके में वीरगति पाने वाले जयमल मेड़तिया और रावत पत्ता सिसोदिया की गजारूढ़ मूर्ति स्थापित हैं।
| बूंदी मोणा शासक 'बूंदा' के नाम पर इसका नाम बूंदी पड़ा। बृंदा के पोते जैता को हराकर हाडा देवा ने 1241 ई. में यहाँ चौहान शासन शापित किया। इसे छोटी काशी एवं 'City of Step Wells' भी कहते हैं।
बीजासण माता' का मंदिर : इंद्रगढ़ में स्थित। इसे 'इंद्रगढ़ माता का मंदिर' भी कहते हैं। केशोरायपाटन : प्राचीन 'पाटन' । यहाँ स्थित केशवराय जी के प्रसिद्ध मंदिर का निर्माण 1601 ई. में बूंदी के राजा शत्रुसाल
ने करवाया था। राजमहल (गढ़पैलेस) : बूंदी का राजप्रासाद। • चित्रशाला :: राव राजा उम्मेद सिंह द्वारा निर्मित्त । . सुखमहल
: जैतसागर झील में स्थित महल जिसका निर्माण राजा विष्णुसिंह ने करवाया था। • जैतसागर
: इस झील का निर्माण बूंदी के अंतिम मीणा शासक जैता ने करवाया था। • क्षार बाग(केशरबाग) : बूंदी में स्थित यह स्थल बूंदी के दिवंगत राजाओं का समाधि स्थल है।
• शिकार बुर्ज : पहाड़ियों में स्थित आश्रम जहाँ महाराव राजा उम्मेदसिंह संन्यास ग्रहण के बाद रहा करते थे। 01. रानीजी की बावड़ी : बूंदी नगर में स्थित यह बावड़ी बावड़ियों का सिरमौर है । इस बावड़ी का निर्माण राव राजा अनिरुद्ध सिंह
की विधवा रानी नातावनजी ने 18वीं सदी के पूर्वार्द्ध में करवाया था। बता • अनारकली की बावड़ी : रानी नाथावती की दासी अनारकली द्वारा वर्तमान छत्रपुरा क्षेत्र (बूंदी) में निर्मित्त । गुल्ला की बावड़ी, चम्पा
बाग की बावडी व पठान की बावडी आदि बँदी की अन्य प्रसिद्ध बावड़ियाँ है। स्व. चौरासी खम्भों की छतरी : देवपुरा गाँव (बूंदी) के निकट राव अनिरुद्ध द्वारा धाबाई देवा की स्मृति में 1683 में निर्मित्त। के . तारागढ़ दुर्ग (गिरि दुर्ग) : बूंदी के राव देवा के वंशज राव बरसिंह द्वारा 1354 ई. में निर्मित्त । इस दुर्ग के भीतर शक्तिशाली तोप
'गर्भ-गुंजन' है।
चित्तौड़गढ़ • मातकण्डिया :चित्तौड़गढ़ जिले के राशमी में हरनाथपुरा ग्राम के पास बहने वाली चन्द्रभागा नदी के किनारे स्थित यह तीर्थ
राशमी(चित्तौड़गढ़) 'राजस्थान का हरिद्वार' भी कहा जाता है। यहाँ प्रसिद्ध लक्ष्मण झूला (हरिद्वार की भाँति) है। • समिद्धेश्वर मंदिर : यह 1011 ई. से 1055 ई. के बीच मालवा के परमार राजा भोज ने बनवाया था। महाराणा मोकल ने 1428
ई. में इसका जीर्णोद्धार करवाया। नागर शैली में निर्मित्त। • सांवलिया जी मंदिर :चित्तौड़गढ़ के मण्डपिया गाँव में सांवलिया जी का विश्वविख्यात मंदिर स्थित है। यहाँ काले पत्थर की
श्रीकृष्ण मूर्ति है। • मीरा मंदिर : यह मंदिर चित्तौड़गढ़ दुर्ग में इन्डो-आर्य शैली में निर्मित्त हैं। • सतबीस देवरी :11वीं सदी में बना एक भव्य जैन मंदिर, जिसमें 27 देवरियाँ होने के कारण 'सतबीस देवरी' कहलाता है। • चितौड़गढ़ का कुंभ :8वीं शती में चितौड़गढ़ दुर्ग में कुंभ श्याम मंदिर व कालिका माता (मूल रूप से सूर्य मंदिर) जैसे विशाल श्याम मंदिर .
प्रतिहारकालीन मंदिरों का निर्माण हुआ। महामारू शैली में निर्मित्त ये दोनों देवालय मेवाड़ में 'मंदिर
निर्माण के वास्तुशिल्प इतिहास में रेखांकित किये जाने वाले कोष चिन्ह के समान' हैं। • असावरा माता का मंदिर: भदेसर में स्थित मंदिर जहाँ लकवे के मरीजों का इलाज किया जाता है। • बाड़ोली के शिव मंदिरः उत्तरगुप्तकालीन यह मंदिर परमार राजा हुन ने बनवाया था। यह बामनी और चंबल नदी के संगम क्षेत्र में
राणा प्रताप सागर बाँध के निकट चित्तौड़गढ़ के भैंसरोड़गढ़ में स्थित है। इन मंदिरों को सर्वप्रथम प्रकाश में लाने का कार्य 1821 में जेम्स टॉड ने किया। इसका निर्माण 8वीं से 11वीं शताब्दी के मध्य हुआ। यह 9
मंदिरों का समूह है। - जैन कीर्ति स्तम्भ :प्रथम जैन तीर्थंकर आदिनाथ को समर्पित यह स्मारक दिगम्बर जैन महाजन जीजाक द्वारा बनवाया गया __ था। यह चित्तौड़गढ़ दुर्ग में स्थित है।
मालवा (माई) के सुल्तान महमद खिलजी पर विजय के उपलक्ष में महाराणा कुंभा द्वारा चिडन्ट १ माजले विजय स्तम्भ का निर्माण 1440 ई. में प्रारंभ करवाया गया जो 1448 ई. में पूर्ण हुआ।
आठवीं मंजिल पर अल्लाह' खदा हआ है इसे भारतीय मूर्तिकला का विश्व कोष' भी कहा जाता है। . फतहप्रकाश महल :कुभा महल के प्रमख प्रवेश द्वार 'बडी पोल' से बाहर निकलते ही फतह प्रकाश महल ह। • नगरी (माध्यमिका) : बेड़च नदी के किनारे स्थित राजस्थान का प्राचीन कस्वा। . चलिया प्रपात :चित्तौडगढ के चलिया गांव में चम्बल नदी पर स्थित 60 फीट ऊंचा जलप्रपात • संत रैदास की छतरी :चित्तौड़गढ़ दुर्ग में मीरां के मंदिर के सामने संत रैदास की छतरी स्थित है। • चित्तौड़ दुर्ग (गिरिदुर्ग) : राजस्थान का गौरव, गढ़ों का सिरमौर । गंभीरी एवं बेडच नदियों के संगम स्थल के समीप अरावल ।
माला पर मौर्य राजा चित्रांग (चित्रांगद) द्वारा निर्मित्त । पूर्व नाम 'चित्रकोट'। यहाँ तीन इतिहास प्रसिद्ध साके (बुद्ध) क्रमश: 1303 ई., 1534 ई. एवं 1567 ई. में हुए। 1303 मादल सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने इसे जीतकर अपने पुत्र खिज्रखाँ को सौंपा एवं इसका नाम खित्राबाद यहाँ जयमल-पत्ता की छतरियाँ हैं। 1303 ई. का साका राजस्थान का दूसरा साका था।
| चुरू दूर-दूर रेत के टीलों से आच्छादित चुरू जिला भी अपनी हवेलियों के लिए प्रसिद्ध है। यहाँको कोठारी हवेली, ढोलामार के चि. छ: मंजिली सुराणा हवेली (जिसमें 1100 दरवाजे एवं खिड़कियाँ हैं) आदि प्रसिद्ध हैं। • ददरेवा : भाद्रपद मास में कृष्णा नवमी (गोगानवमी) को मेला भरता है। यह गोगाजी का जन्म स्थान है। • सालासर बालाजी : सालासर में स्थित हनुमानजी का प्रसिद्ध मंदिर। • तिरुपति बालाजी : सुजानगढ़ में स्थित भगवान वेंकटेश्वर तिरुपति बालाजी का मंदिर। • ताल छापर : काले हिरणों की प्राकृतिक शरणस्थली यह वन्य जीव अभ्यारण्य ताल छापर कस्बे में है। • चुरू का किला : चाँदी के गोले दागने वाला किला। अपनी आजादी एवं अस्मिता की रक्षार्थ इस दुर्ग के ठाकुर शिवसिंह ने 132
ई. में बीकानेर की सेना के विरुद्ध युद्ध में गोला बारूद समाप्त हो जाने पर चाँदी के गोले बनाकर तोपों से दुरन्त पर दागे थे।
दौसा • मेंहदीपुर बालाजी : बालाजी का यह प्रसिद्ध मंदिर सिकन्दरा से महुवा के बीच स्थित है। दो पहाड़ियों के बीच की घाट
में स्थित होने के कारण इसे 'घाटा मेंहदीपुर' भी कहते हैं। • हर्षत माता का मंदिर, : यह मंदिर 8वीं शताब्दी की प्रतिहार कला का अनुपम उदाहरण है। यह मंदिर वैष्णव सम्प्रदाय का है।
आभानेरी (दौसा) • गेटोलाव
: दौसा नगर के पास स्थित इस स्थान पर संत दादू के शिष्य सुंदरदास जी का स्मारक है। • भाण्डारेज की बावड़ियाँ : दौसा का भाण्डारेज गाँव प्राचीन कला व संस्कृति की मिसाल है। यहाँ बावड़ियाँ, कुण्ड, भूतेश्वर
महादेव मंदिर, हनुमान मंदिर व गोपालगढ़ स्थित है। • आभानेरी
: बाँदीकुई के निकट आभानेरी एक प्राचीन नगर है जो निकुंभ क्षत्रियों की राजधानी रहा है। यहां के
चन्द्र नामक निकुंभ राजा ने 8वीं सदी में हर्षत माता के मंदिर व चाँद बावड़ी बनवाई । यहाँ 8वीं सदा
के प्रतिहारों के महामारू शैली के मंदिर है। • चाँदबावड़ी
: बाँदीकुई रेलवे स्टेशन (दौसा) से 8 किमी. दूर साबी नदी के निकट चाँदबावडी के नाम से विख्यात
आभानेरी बावड़ी का निर्माण 8वीं शती में प्रतिहार निकुंभ राजा चाँद ने करवाया। • आलूदा का बुबानिया कुण्ड : दौसा के समीप ही आलूदा गाँव में ऐतिहासिक बावड़ी में निर्मित्त कंड। • दौसा किला (गिरिदुर्ग) : देवगिरि पहाड़ी पर सूप की आकृति का किला । दौसा कछवाहों की आरंभिक राजधानी था।
बनकर पूर्ण हुआ। इसकी आकृति चतुष्कोण या चतुर्भजाकति है। यहाँ सूरजपोल पर रायसिंह प्रशस्ति उत्कीर्ण हैं। दुर्ग में 1567 ई. के चित्तौड़ साके में वीरगति पाने वाले जयमल मेड़तिया और रावत पत्ता सिसोदिया की गजारूढ़ मूर्ति स्थापित हैं।
| बूंदी मोणा शासक 'बूंदा' के नाम पर इसका नाम बूंदी पड़ा। बृंदा के पोते जैता को हराकर हाडा देवा ने 1241 ई. में यहाँ चौहान शासन शापित किया। इसे छोटी काशी एवं 'City of Step Wells' भी कहते हैं।
बीजासण माता' का मंदिर : इंद्रगढ़ में स्थित। इसे 'इंद्रगढ़ माता का मंदिर' भी कहते हैं। केशोरायपाटन : प्राचीन 'पाटन' । यहाँ स्थित केशवराय जी के प्रसिद्ध मंदिर का निर्माण 1601 ई. में बूंदी के राजा शत्रुसाल
ने करवाया था। राजमहल (गढ़पैलेस) : बूंदी का राजप्रासाद। • चित्रशाला :: राव राजा उम्मेद सिंह द्वारा निर्मित्त । . सुखमहल
: जैतसागर झील में स्थित महल जिसका निर्माण राजा विष्णुसिंह ने करवाया था। • जैतसागर
: इस झील का निर्माण बूंदी के अंतिम मीणा शासक जैता ने करवाया था। • क्षार बाग(केशरबाग) : बूंदी में स्थित यह स्थल बूंदी के दिवंगत राजाओं का समाधि स्थल है।
• शिकार बुर्ज : पहाड़ियों में स्थित आश्रम जहाँ महाराव राजा उम्मेदसिंह संन्यास ग्रहण के बाद रहा करते थे। 01. रानीजी की बावड़ी : बूंदी नगर में स्थित यह बावड़ी बावड़ियों का सिरमौर है । इस बावड़ी का निर्माण राव राजा अनिरुद्ध सिंह
की विधवा रानी नातावनजी ने 18वीं सदी के पूर्वार्द्ध में करवाया था। बता • अनारकली की बावड़ी : रानी नाथावती की दासी अनारकली द्वारा वर्तमान छत्रपुरा क्षेत्र (बूंदी) में निर्मित्त । गुल्ला की बावड़ी, चम्पा
बाग की बावडी व पठान की बावडी आदि बँदी की अन्य प्रसिद्ध बावड़ियाँ है। स्व. चौरासी खम्भों की छतरी : देवपुरा गाँव (बूंदी) के निकट राव अनिरुद्ध द्वारा धाबाई देवा की स्मृति में 1683 में निर्मित्त। के . तारागढ़ दुर्ग (गिरि दुर्ग) : बूंदी के राव देवा के वंशज राव बरसिंह द्वारा 1354 ई. में निर्मित्त । इस दुर्ग के भीतर शक्तिशाली तोप
'गर्भ-गुंजन' है।
चित्तौड़गढ़ • मातकण्डिया :चित्तौड़गढ़ जिले के राशमी में हरनाथपुरा ग्राम के पास बहने वाली चन्द्रभागा नदी के किनारे स्थित यह तीर्थ
राशमी(चित्तौड़गढ़) 'राजस्थान का हरिद्वार' भी कहा जाता है। यहाँ प्रसिद्ध लक्ष्मण झूला (हरिद्वार की भाँति) है। • समिद्धेश्वर मंदिर : यह 1011 ई. से 1055 ई. के बीच मालवा के परमार राजा भोज ने बनवाया था। महाराणा मोकल ने 1428
ई. में इसका जीर्णोद्धार करवाया। नागर शैली में निर्मित्त। • सांवलिया जी मंदिर :चित्तौड़गढ़ के मण्डपिया गाँव में सांवलिया जी का विश्वविख्यात मंदिर स्थित है। यहाँ काले पत्थर की
श्रीकृष्ण मूर्ति है। • मीरा मंदिर : यह मंदिर चित्तौड़गढ़ दुर्ग में इन्डो-आर्य शैली में निर्मित्त हैं। • सतबीस देवरी :11वीं सदी में बना एक भव्य जैन मंदिर, जिसमें 27 देवरियाँ होने के कारण 'सतबीस देवरी' कहलाता है। • चितौड़गढ़ का कुंभ :8वीं शती में चितौड़गढ़ दुर्ग में कुंभ श्याम मंदिर व कालिका माता (मूल रूप से सूर्य मंदिर) जैसे विशाल श्याम मंदिर .
प्रतिहारकालीन मंदिरों का निर्माण हुआ। महामारू शैली में निर्मित्त ये दोनों देवालय मेवाड़ में 'मंदिर
निर्माण के वास्तुशिल्प इतिहास में रेखांकित किये जाने वाले कोष चिन्ह के समान' हैं। • असावरा माता का मंदिर: भदेसर में स्थित मंदिर जहाँ लकवे के मरीजों का इलाज किया जाता है। • बाड़ोली के शिव मंदिरः उत्तरगुप्तकालीन यह मंदिर परमार राजा हुन ने बनवाया था। यह बामनी और चंबल नदी के संगम क्षेत्र में
राणा प्रताप सागर बाँध के निकट चित्तौड़गढ़ के भैंसरोड़गढ़ में स्थित है। इन मंदिरों को सर्वप्रथम प्रकाश में लाने का कार्य 1821 में जेम्स टॉड ने किया। इसका निर्माण 8वीं से 11वीं शताब्दी के मध्य हुआ। यह 9
मंदिरों का समूह है। - जैन कीर्ति स्तम्भ :प्रथम जैन तीर्थंकर आदिनाथ को समर्पित यह स्मारक दिगम्बर जैन महाजन जीजाक द्वारा बनवाया गया __ था। यह चित्तौड़गढ़ दुर्ग में स्थित है।
मालवा (माई) के सुल्तान महमद खिलजी पर विजय के उपलक्ष में महाराणा कुंभा द्वारा चिडन्ट १ माजले विजय स्तम्भ का निर्माण 1440 ई. में प्रारंभ करवाया गया जो 1448 ई. में पूर्ण हुआ।
आठवीं मंजिल पर अल्लाह' खदा हआ है इसे भारतीय मूर्तिकला का विश्व कोष' भी कहा जाता है। . फतहप्रकाश महल :कुभा महल के प्रमख प्रवेश द्वार 'बडी पोल' से बाहर निकलते ही फतह प्रकाश महल ह। • नगरी (माध्यमिका) : बेड़च नदी के किनारे स्थित राजस्थान का प्राचीन कस्वा। . चलिया प्रपात :चित्तौडगढ के चलिया गांव में चम्बल नदी पर स्थित 60 फीट ऊंचा जलप्रपात • संत रैदास की छतरी :चित्तौड़गढ़ दुर्ग में मीरां के मंदिर के सामने संत रैदास की छतरी स्थित है। • चित्तौड़ दुर्ग (गिरिदुर्ग) : राजस्थान का गौरव, गढ़ों का सिरमौर । गंभीरी एवं बेडच नदियों के संगम स्थल के समीप अरावल ।
माला पर मौर्य राजा चित्रांग (चित्रांगद) द्वारा निर्मित्त । पूर्व नाम 'चित्रकोट'। यहाँ तीन इतिहास प्रसिद्ध साके (बुद्ध) क्रमश: 1303 ई., 1534 ई. एवं 1567 ई. में हुए। 1303 मादल सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने इसे जीतकर अपने पुत्र खिज्रखाँ को सौंपा एवं इसका नाम खित्राबाद यहाँ जयमल-पत्ता की छतरियाँ हैं। 1303 ई. का साका राजस्थान का दूसरा साका था।
| चुरू दूर-दूर रेत के टीलों से आच्छादित चुरू जिला भी अपनी हवेलियों के लिए प्रसिद्ध है। यहाँको कोठारी हवेली, ढोलामार के चि. छ: मंजिली सुराणा हवेली (जिसमें 1100 दरवाजे एवं खिड़कियाँ हैं) आदि प्रसिद्ध हैं। • ददरेवा : भाद्रपद मास में कृष्णा नवमी (गोगानवमी) को मेला भरता है। यह गोगाजी का जन्म स्थान है। • सालासर बालाजी : सालासर में स्थित हनुमानजी का प्रसिद्ध मंदिर। • तिरुपति बालाजी : सुजानगढ़ में स्थित भगवान वेंकटेश्वर तिरुपति बालाजी का मंदिर। • ताल छापर : काले हिरणों की प्राकृतिक शरणस्थली यह वन्य जीव अभ्यारण्य ताल छापर कस्बे में है। • चुरू का किला : चाँदी के गोले दागने वाला किला। अपनी आजादी एवं अस्मिता की रक्षार्थ इस दुर्ग के ठाकुर शिवसिंह ने 132
ई. में बीकानेर की सेना के विरुद्ध युद्ध में गोला बारूद समाप्त हो जाने पर चाँदी के गोले बनाकर तोपों से दुरन्त पर दागे थे।
दौसा • मेंहदीपुर बालाजी : बालाजी का यह प्रसिद्ध मंदिर सिकन्दरा से महुवा के बीच स्थित है। दो पहाड़ियों के बीच की घाट
में स्थित होने के कारण इसे 'घाटा मेंहदीपुर' भी कहते हैं। • हर्षत माता का मंदिर, : यह मंदिर 8वीं शताब्दी की प्रतिहार कला का अनुपम उदाहरण है। यह मंदिर वैष्णव सम्प्रदाय का है।
आभानेरी (दौसा) • गेटोलाव
: दौसा नगर के पास स्थित इस स्थान पर संत दादू के शिष्य सुंदरदास जी का स्मारक है। • भाण्डारेज की बावड़ियाँ : दौसा का भाण्डारेज गाँव प्राचीन कला व संस्कृति की मिसाल है। यहाँ बावड़ियाँ, कुण्ड, भूतेश्वर
महादेव मंदिर, हनुमान मंदिर व गोपालगढ़ स्थित है। • आभानेरी
: बाँदीकुई के निकट आभानेरी एक प्राचीन नगर है जो निकुंभ क्षत्रियों की राजधानी रहा है। यहां के
चन्द्र नामक निकुंभ राजा ने 8वीं सदी में हर्षत माता के मंदिर व चाँद बावड़ी बनवाई । यहाँ 8वीं सदा
के प्रतिहारों के महामारू शैली के मंदिर है। • चाँदबावड़ी
: बाँदीकुई रेलवे स्टेशन (दौसा) से 8 किमी. दूर साबी नदी के निकट चाँदबावडी के नाम से विख्यात
आभानेरी बावड़ी का निर्माण 8वीं शती में प्रतिहार निकुंभ राजा चाँद ने करवाया। • आलूदा का बुबानिया कुण्ड : दौसा के समीप ही आलूदा गाँव में ऐतिहासिक बावड़ी में निर्मित्त कंड। • दौसा किला (गिरिदुर्ग) : देवगिरि पहाड़ी पर सूप की आकृति का किला । दौसा कछवाहों की आरंभिक राजधानी था।
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