यूरोप का एक देश है नार्वे



वहां कभी जाईयेगा तो यह सीन आम तौर पर पाईयेगा:-
                                

एक रेस्तरां है;
उसके कैश काउंटर पर एक महिला आती है और कहती है,
"5 Coffee, 1 Suspension"
फिर वह पांच कॉफी के पैसे देती है और चार कप कॉफी ले जाती है।
थोड़ी देर बाद
एक और आदमी आता है, कहता है,
"4 Lunch, 2 Suspension"
वह चार Lunch का भुगतान करता है 
और दो Lunch packets ले जाता है।
फिर एक और आता है, आर्डर देता है
"10 Coffee, 6 Suspension"
वह दस के लिए भुगतान करता है, चार कॉफी ले जाता है।
थोड़ी देर बाद
एक बूढ़ा आदमी जर्जर कपड़ों में काउंटर पर आकर पूछता है,
"Any Suspended Coffee ?"
काउंटर- गर्ल कहती है,
"Yes" और एक कप गर्म कॉफी उसको दे देती है।
कुछ देर बाद वैसे ही एक और दाढ़ी वाला आदमी अंदर आता है, पूछता है,
"Any Suspended Lunch ?"

तो काउंटर पर मौजूद व्यक्ति गर्म खाने का एक पार्सल और पानी की एक बोतल उसको दे देता है। और यह क्रम एक ग्रुप द्वारा अधिक पेमेंट करने का और दूसरे ग्रुप द्वारा बिना पेमेंट खान-पान ले जाने का दिन भर चलता रहता है यानि अपनी "पहचान" न कराते हुए और किसी के चेहरे को "जाने बिना" भी अज्ञात गरीबों, जरुरतमन्दों की मदद करना।

यह है नार्वे नागरिकों की परंपरा और यह "कल्चर" अब यूरोप के अन्य कई देशों में फैल रहा है।
और हम ???

अस्पतालों में एक केला, एक संतरा मरीजों को बांटेंगे , सारे मिलकर अपनी पार्टी, अपने संगठन का ग्रुप फोटो खिंचाकर अखबार में छापेंगे, सेल्फियों की बाढ़ लगा देंगे और सोशियल मीडिया पर वायरल करेंगे है ना ??

हमने तो कोरोना काल में भी हल्का सा दान करके हर स्तर पर बैनर लगाकर दिया है बाजे-गाजे के साथ
कभी अखबार में छप कर, कभी टी.वी. पर भाषण दे-देकर। है ना ??

या फिर भूखे बच्चे रेस्तरां के बाहर ललचाते हुए आपको खाते-पीते देखेंगे और आप उनको कुछ देंगे भी तो लोगों को दिखाते हुए और याचक का मान भी चोट पहुँचाते हुए है ना ??

क्या भारत में भी इस प्रकार की  खान-पान की "Suspension" प्रथा का प्रारंभ नहीं हो सकता है?
हमें भारत पर  गर्व है कि, हमारे यहां भी ऐसे दानदाता हुए हैं जो दान देते समय अपनी नजरें संकोच से झुका लिया करते थे।

अगर नार्वे की तरह यह आदर्श प्रथा हम भी शुरू करें, कितना अच्छा होगा! दानदाता को पता न हो कि, दानग्रहीता कौन है और दानग्रहीता को पता न हो दानदाता कौन है। यह अनुकरणीय पहल हो सकती है। धीरे धीरे इस प्रथा को भोजन के अतिरिक्त अन्य कार्यों में भी अपनाया जा सकता है।

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